व्यापार

जन धन योजना से जन-निवेश: क्या म्यूचुअल फंड उद्योग को चाहिए नई दिशा?

साल 1995 में, एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड ऑफ इंडिया (भारतीय म्यूचुअल फंड एसोसिएशन) बनाने के लिए कुछ पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर म्‍यूचुअल फंड्स (एमएफ) के चीफ एग्‍जीक्‍यूटिव ऑफिसर एक साथ आए।

 

यह एसोसिएशन बनाने के पीछे उद्देश्य उन निवेशकों को आकर्षित करने का था , जिनकी सोच प्रॉपर्टी, गोल्‍ड या बैंक डिपॉजिट से आगे नहीं बढ़ पाती थी या इससे अलग उन्होंने कुछ नहीं नहीं देखा था। हालांकि, इसके बाद भी कई दशकों तक म्‍यूचुअल फंड के मजबूत प्रदर्शन के बावजूद, भारतीय निवेशकों ने इसे काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया। साल 2014 तक, म्यूचुअल फंड (एमएफ) भारतीय परिवारों के फाइनेंशियल एसेट्स का 5 फीसदी से भी कम प्रतिनिधित्व करते थे।

 

लेकिन साल 2024 तक तेजी से आगे बढ़ते हुए स्थिति पूरी तरह बदल गई है। आरबीआई गवर्नर सहित कई लोगों ने हाल ही में म्‍यूचुअल फंड और शेयर बाजार के बारे में चिंता जताई है, जिनमें भारी संख्‍या में भारतीय निवेशक पैसा लगा रहे हैं, जिससे बैंकों की डिपॉजिट ग्रोथ सुस्त पड़ गई है। पिछले दशक में म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री 6 गुना बढ़ गई है और अब यह बैंक डिपॉजिट के 30 फीसदी के बराबर है।

आखिर इस ग्रोथ को किसने संचालित किया है? जबकि पिछली पीढ़ी के निवेशकों ने मुख्य रूप से अपनी जमा पूंजी को पूरी तरह से सुरक्षित रखने पर फोकस किया था और पीपीएफ और बैंक डिपॉजिट जैसे कन्जर्वेटिव कहे जाने वाले निवेश के विकल्पों को चुना था, वहीं आज का युवा अपने निवेश पर अधिक रिटर्न चाहता है। भारत में, निवेशक अब अपनी लाइफ स्‍टाइल को फाइनेंस करने और अपने जीवन के तमाम लक्ष्य को पूरा करने में मदद के लिए अपनी बचत में 'कुछ ज्यादा' की तलाश कर रहे हैं।

 

पिछले 2 दशक में, ज्यादातर इक्विटी फंड ने निवेशकों की संपत्ति में 15-20 गुना बढ़ोतरी की है, जो कि बैंक डिपॉजिट जैसे पारंपरिक निवेश के विकल्प में हासिल किए गए रिटर्न की गई तुलना में लगभग 4-5 गुना अधिक है। निवेशकों के लिए जागरूकता अभियान "म्यूचुअल फंड सही है" के साथ मिलकर यह सुनिश्चित किया गया कि अधिक से अधिक निवेशक इस नए एसेट क्लास के बारे में समझें और इसे लेकर जागरूक हो जाएं, जिसे उन्होंने लंबे समय तक नजरअंदाज कर दिया था।

 

हालांकि, म्‍यूचुअल फंड अब तक सिर्फ 5 करोड़ निवेशकों तक ही पहुंच पाए हैं, यानी इसकी पहुंच आबादी के करीब 3 फीसदी लोगों तक ही है। अब तक 10 में से एक भी बैंक अकाउंट होल्‍डर ने म्यूचुअल फंड प्रोडक्‍ट में निवेश नहीं किया है। इसके अलावा म्यूचुअल फंड एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) का दो तिहाई हिस्सा टॉप 15 शहरों से आता है, जो यह संकेत देता है कि अभी म्‍यूचुअल फंड की पहुंच बहुत कम क्षेत्रों व लोगों तक है। इंडस्ट्री की शुरुआत तो मजबूत हुई है, लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।

 

Jan Dhan Yojana से हुआ बैंकिंग सिस्टम को लाभ

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में जन धन अकाउंट के बारे में घोषणा की, तो बैंकिंग इंडस्ट्री ने इसे सरकार द्वारा थोपे गए एक काम के रूप में देखा होगा। 10 साल बाद, बैंकिंग सिस्‍टम को इससे बहुत ज्यादा लाभ हुआ है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 14 अगस्त, 2024 तक 53.12 करोड़ जनधन खाताधारक थे, और इन अकाउंट में कुल 2.31 ट्रिलियन रुपये (2.31 लाख करोड़ रुपये) जमा हैं।

 

सरकार के जन धन पहल ने एक ऐसी नई पीढ़ी को बैंकिंग सिस्टम के तहत लाने का काम किया, जो पहले बैंकिंग सिस्‍टम से दूर थे। वहीं बढ़ रही आय और बचत के साथ, अब ऐसे ग्राहकों की नई पीढ़ी तैयार हो चुकी है, जो एडवांस लोन और डिपॉजिट प्रोडक्ट के लिए ज्‍यादा खर्च करने को तैयार हैं और वे इस तरह के ज्यादा प्रोडक्ट खरीदने में अपना इंटरेस्ट दिखा रहे हैं। जन धन अकाउंट को ज्यादा प्रोत्साहन केवाईसी मानदंडों के सरल होने से मिला है, जिससे बैंकिंग सुविधा से वंचित लाखों भारतीयों को अपने जीवन में पहली बार बैंक अकाउंट खोलने का मौका मिला ।

 

JAM (जन धन, आधार और मोबाइल) ने देश में पेमेंट इकोसिस्टम में पूरी तरह से क्रांति ला दी है और वित्तीय समावेशन को इतना सशक्त बनाया है, जितना किसी अन्य पहल में नहीं हुआ है। इसी तरह, म्‍यूचुअल फंड इंडस्ट्री को फाइनेंशियलाइजेशन और वेल्थ क्रिएशन के लाभ से अबतक दूर रही जनता तक पहुंचाने के लिए एक समान जन निवेश मूवमेंट की आवश्यकता है। इसके लिए इंडस्‍ट्री और रेगुलेटर्स के बीच लगातार और सक्रिय रूप से जुड़ाव की भी जरूरत है।

म्‍यूचुअल फंड को असलियत में घर घर तक ले जाने के लिए, हमें ग्राहक की ऑन-बोर्डिंग लागत जैसे आरटीए (RTA), सीकेवाईसी (CKYC) और अन्य शुल्कों को कम करना होगा और एसेट मैनेजमेंट कंपनी के लिए सर्विसेज के लिए छोटे टिकट साइज के निवेश को संभव बनाना होगा। क्या 2 फेज वाली केवाईसी प्रक्रिया पर विचार करना संभव है? एक निश्चित टिकट साइज (शायद 25,000 प्रति निवेशक) तक के निवेश के लिए क्या हम बैंक केवाईसी पर भरोसा कर सकते हैं या कुछ बहुत ही बुनियादी (स्तर 1) केवाईसी का पालन कर सकते हैं? हायर टिकट साइज के लिए, फुल केवाईसी (लेवल 2) पूरा किया जा सकता है।

बड़ौदा बीएनपी परिबा एसेट मैनेजमेंट कंपनी के सीईओ सुरेश सोनी

इसके आगे उन्होंने कहा कि इस भारी संभावनाओं वाले बाजार में और मजबूत होने के लिए, एक इंडस्‍ट्री के रूप में हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हम निवेशकों को लिक्विड और डेट फंड के बारे में अधिक जागरूक बनाएं और इस कैटेगरी के बारे में उनको सही जानकारी दें। तो क्या अब "लिक्विड/डेट फंड सही है" का समय है?

 

कोविड-19 महामारी के बाद, भारतीय शेयर बाजारों में लगातार तेजी देखी गई है, जिसने बड़ी संख्या में रिटेल निवेशकों को इक्विटी म्‍यूचुअल फंड की ओर आकर्षित किया है। आज इक्विटी और हाइब्रिड फंड इंडस्ट्री एयूएम का 2/3 से अधिक प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि लगभग एक दशक पहले यह सिर्फ 1/3 था। यह एक स्वागत योग्य ट्रेंड है और यह ट्रेंड वेल्थ क्रिएशन में मदद करता है। हालांकि, एयूएम को आकर्षित करने के लिए लगातार बढ़ रहे शेयर बाजार पर पूरी तरह से निर्भर रहना एक बड़ा जोखिम है।

 

इक्विटी बाजारों में लंबे समय तक गिरावट म्‍यूचुअल फंड एयूएम ग्रोथ पर उल्टा असर डाल सकती है। इसलिए किसी भी निवेशक के पोर्टफोलियो को बेहतर रिस्क एडजस्टेड रिटर्न देने और सुरक्षा व लिक्विडिटी की समान रूप से महत्वपूर्ण आवश्यकता को पूरा करने के लिए अलग अलग एसेट क्लास के मिक्‍स की आवश्यकता होती है।

 

इंडिविजुअल निवेशकों के पास इक्विटी फंड एयूएम का 88 फीसदी हिस्सा है, लेकिन डेट फंड एयूएम का 12 फीसदी से भी कम है। इससे साफ होता है कि जहां तक डेट फंड का सवाल है। एमएफ इंडस्‍ट्री लिक्विड फंड जैसे कुछ बहुत दिलचस्प उत्पाद पेश करता है, जो न केवल हाई सेफ्टी, हाई लिक्विडिटी प्रदान करते हैं, बल्कि बैंक डिपॉजिट के 3 फीसदी सालाना रिटर्न की तुलना में डबल रिटर्न दे रहे हैं। अफसोस की बात है कि म्‍यूचुअल फंड की इस कैटेगरी पर लगभग विशेष रूप से कॉर्पोरेट निवेशकों का ही वर्चस्व बना हुआ है और रिटेल निवेशक इसके लाभ के बारे में काफी हद तक अनजान हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button